Skip to main content

Posts

Showing posts with the label Nationalism

Finding Indic-ism

We Indians are being raised, educated & cultivated under the western education that predominantly is based on the ‘socialist-secular’ system in India. After higher education & employment, we go on to the next level & get ourselves exposed to the ‘free-market-liberal-capitalist’ system. Along the way, some of us get romantically entangled into the ‘Marxist-communist-Naxal’ mindset with leanings towards everything as long as it is Anti-this & that. This pretty much is the distribution of our thought process & mindset. Carefully curated, combed & cultivated, the educated Indians then join the tribe of  ‘ Global Citizens ’. Very few, who are either exposed to or choose to study the  Indic ( Swadeshi ) thought, are generally considered as old-fashioned & orthodox. Let us explore this further.  Panchayat , the web-series that is currently breaking records and pushing the boundaries, is being liked by one and all, across age and genres. Why? Because...

धर्मनिरपेक्ष समाज और नागरिक संहिता

" मज़हबी बहस मैं ने की ही नहीं   फ़ालतू अक़्ल मुझ में थी ही नहीं ~ Sujoy Biswas (Joy) on Twitter पिछले लेख के माध्यम से हमने  धर्मनिरपेक्षता और राष्ट्रवाद ...  को बहुत संक्षिप्त में समझने की कोशिश की थी ।  इस लेख के जरिये हम धर्मनिरपेक्षता का सामजिक अर्थ समझने की कोशिश करेंगे  । जैसा कि हमने पिछले लेख में जिक्र किया था , धर्मनिरपेक्षता एक बहुत ही नयी सोच है जो पिछले करीब तीन सौ साल पुरानी संकल्पना है । हम उस देश के वासी हैं जिस देश में  'वसुधैव कुटुम्बकम्'   की सोच करीब ढाई हज़ार साल पुरानी है  । आज पूरा देश इस समय धर्मनिरपेक्षता की बहस करता है, बिना ये जाने समझे कि इसका उपयोग कहाँ से और क्यों शुरू हुआ; और आज इस शब्द ने हमारी सामाजिक ज़िंदगी को एक नया मोड़ दे दिया है । उस मोड़ पर हम कैसे पहुंचे और वहां पहुँच कर हम धर्मनिरपेक्षता को किस रूप में समझते हैं, इसका विश्लेषण हम इस लेख में करेंगे।      पिछले साठ साल के भारतीय प्रसंग में...

धर्मनिरपेक्षता और राष्ट्रवाद ...

इस ब्लॉगपोस्ट को हिंदी में लिखने का एक मुख्य कारण ये है कि इसका सीधा सम्बन्ध हम और हमारे अपने लोगों से है । इसे आगे पढ़ने से पहले आप से एक विनती है कि इसे आप किसी धर्म, जाति, संप्रदाय या विचारधारा के संकीर्ण लेंस से ना देखें । इसे केवल एक भारतीय नागरिक की नज़र से पढ़ें , जिसका केवल हिंदुस्तान और उसके संवैधानिक नागरिक होने के अलावा और कोई परिचय नहीं है । क्यूंकि यह एक गहरा विषय है और इस पर कोई भी टिप्पणी संक्षिप्त में करना मूर्खता होगी , इसीलिए हम इसे दो भागों में समझने की कोशशि करेंगे । तो पहले शुरू करते हैं , ये दो चार बड़े-बड़े शब्दों को लेकर आजकल जो ज़बरदस्त बहस चल रही है : धर्मनिरपेक्षता, असहिष्णुता और राष्ट्रवाद इत्यादि ... इस बहस के मुद्दे पर  कुछ विचार यहाँ साझा करने का प्रयत्न है। ***  धर्मनिरपेक्षता एक ऐसा शब्द है जिसकी संकल्पना आज शायद ही दुनिया के किसी और देश में संवैधानिक या सामाजिक रूप में देखने और सुनने को मिलेगी । ऐसा लगता है जैसे इस शब्द को अपने आप में पूर्ण रूप से लागू करने का सारा ठेका सिर्फ और सिर्फ भारतवर्ष ने ले लिया है ।  ...