" मज़हबी बहस मैं ने की ही नहीं फ़ालतू अक़्ल मुझ में थी ही नहीं ~ Sujoy Biswas (Joy) on Twitter पिछले लेख के माध्यम से हमने धर्मनिरपेक्षता और राष्ट्रवाद ... को बहुत संक्षिप्त में समझने की कोशिश की थी । इस लेख के जरिये हम धर्मनिरपेक्षता का सामजिक अर्थ समझने की कोशिश करेंगे । जैसा कि हमने पिछले लेख में जिक्र किया था , धर्मनिरपेक्षता एक बहुत ही नयी सोच है जो पिछले करीब तीन सौ साल पुरानी संकल्पना है । हम उस देश के वासी हैं जिस देश में 'वसुधैव कुटुम्बकम्' की सोच करीब ढाई हज़ार साल पुरानी है । आज पूरा देश इस समय धर्मनिरपेक्षता की बहस करता है, बिना ये जाने समझे कि इसका उपयोग कहाँ से और क्यों शुरू हुआ; और आज इस शब्द ने हमारी सामाजिक ज़िंदगी को एक नया मोड़ दे दिया है । उस मोड़ पर हम कैसे पहुंचे और वहां पहुँच कर हम धर्मनिरपेक्षता को किस रूप में समझते हैं, इसका विश्लेषण हम इस लेख में करेंगे। पिछले साठ साल के भारतीय प्रसंग में...
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