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Showing posts from May, 2016

Indian Liberals - Comrades in new Avatar ...

There are many Liberal think-tanks, Liberal Organizations and Liberal Voices across India, who consider public policy as their core line of activity. While some of these are Libertarian voices, who simply end with the coffee-table conversations, others from Classical-Liberal and Neo-Liberal ideology groups are able to actually showcase and present their work in the public domain. Liberals are supposed to be highly Rational and Research Oriented in their approach. They are open to new Ideas and Viewpoints. Liberals are supposed to be Rooted & Inclusive. They keep an open mind to listen and respect different Point-of-View (PoV). Putting on top of everything else is the idea of 'Freedom of Expression' (FoE) is the true virtue of a Liberal mind. Above all, they are supposed to be honest to what they actually believe in - the Liberal Ideology. Having been mighty impressed with the rich and traditional 'Liberal' values of India’s past and political history (for exa

भूमंडलीकरण (Globalisation) और उसके तत्व ...

The best way to permanently enslave a people is  to replace their memories, their mythologies, their idioms ~ Sanjeev Sanyal पिछले दो लेखों में हमने धर्मनिरपेक्षता के इतिहास और उसके भारतीय प्रसंग में सामाजिक उपयोगिता पर चर्चा की थी । इस लेख में हम कुछ पाश्चात्य शब्दावली के भारतीय परिवेश में राजनैतिक एवं सामाजिक उपयोग और प्रासंगिकता पर बात  करेंगे । ये एक बहुत तीखी लेकिन सरल टिपण्णी होगी, जिससे शायद सबका सहमत हो पाना नामुमकिन होगा - लेकिन " असहमति पर सहमति " का पालन करते हुए हम आगे बढ़ते हैं ।  हम बात कर रहे हैं कुछ ऐसे शब्दों की जो हमारे देश में पश्चिम सभ्यता से आयात किये गए हैं और अमूमन रोज़ाना अख़बार और टीवी के माध्यम से हमें इनकी काफी बड़ी मात्र में ख़ुराक़ मिलती रही है । बहुलवाद (Plularism), सहनशीलता (Tolerance), बहुसंस्कृतिवाद (Multiculturalism) , भूमंडलीकरण (Globalization) जैसे शब्द इसी शब्दावली के अंतर्गत आते हैं , मूलतः जिनका भारतीय सभ्यता से क़रीब ५००० साल पुराना रिश्ता है ।  इन शब्दावली को समझने के लिए हमें भूमंडलीकरण (Globalization) नाम के

धर्मनिरपेक्ष समाज और नागरिक संहिता

" मज़हबी बहस मैं ने की ही नहीं   फ़ालतू अक़्ल मुझ में थी ही नहीं ~ Sujoy Biswas (Joy) on Twitter पिछले लेख के माध्यम से हमने  धर्मनिरपेक्षता और राष्ट्रवाद ...  को बहुत संक्षिप्त में समझने की कोशिश की थी ।  इस लेख के जरिये हम धर्मनिरपेक्षता का सामजिक अर्थ समझने की कोशिश करेंगे  । जैसा कि हमने पिछले लेख में जिक्र किया था , धर्मनिरपेक्षता एक बहुत ही नयी सोच है जो पिछले करीब तीन सौ साल पुरानी संकल्पना है । हम उस देश के वासी हैं जिस देश में  'वसुधैव कुटुम्बकम्'   की सोच करीब ढाई हज़ार साल पुरानी है  । आज पूरा देश इस समय धर्मनिरपेक्षता की बहस करता है, बिना ये जाने समझे कि इसका उपयोग कहाँ से और क्यों शुरू हुआ; और आज इस शब्द ने हमारी सामाजिक ज़िंदगी को एक नया मोड़ दे दिया है । उस मोड़ पर हम कैसे पहुंचे और वहां पहुँच कर हम धर्मनिरपेक्षता को किस रूप में समझते हैं, इसका विश्लेषण हम इस लेख में करेंगे।      पिछले साठ साल के भारतीय प्रसंग में  धर्मनिरपेक्ष का मतलब रहा है:   अल्पसंख्यक धर्म और संप्रदाय के लोगों को खुश रखना और इसके अंतर्गत हिन्दू धर्म और